Childhood Memories : Part -1 (बचपन की यादें भाग -1)

    बचपन की यादे। भाग -१ 

   ललक : विद्यालय की प्रार्थना सभा के तालियों की  गूज 

” समेट लो इन नाजुक पलो को , ना जाने ये लम्हें कल हो न हों 
  हो भी ये लम्हे क्या  मालूम शामिल उन लम्हो में हम हो ना हो  “

“उस दिन शाम को जब मेरी मां ने इस घटना के बारे में पूछा तो डरते हुए सभा की मैंने पूरी बात बताई ,मुझे यह डर था कि कहीं इन  बातो को लेकर मेरी मां मुझसे नाराज ना हो जाय । “

                                            मैं    के .ब्राम्ही कक्षा नौ की छात्रा हूं, मेरी यह स्मृति बचपन की  यादों  में से घटी हुई कई घटनाओं में से यह  एक यादगार घटना है।  सन् 2010 की बात है ,मै उस समय उत्तर प्रदेश के अमेठी क्षेत्र में स्थित हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के एचएएल स्कूल के कक्षा प्रथम की छात्रा थी।  स्कूल की प्रत्येक विद्यार्थी प्रार्थना सभा में कुछ कविताएं या कुछ अनमोल शब्द सुनाया करते थे। सुनाने के बाद तालियों की गूंज सुनकर मुझे भी बोलने की इच्छा होती थी और मुझे ऐसा लगता कि वह विद्यार्थी उस दिन का हीरो ऑफ द डे हो गया हो। 
               प्रत्येक प्रातः कि यह घटना मेरे भीतर के उत्साह को और बढ़ावा देता था।  हाला की नर्सरी कक्षा में मैं  बाल दिवस के दिन दुल्हन के लिबास में पूरे देश की बेटी बनकर प्रथम पुरस्कार प्राप्त कर चुकी थी।  मेरे प्रत्येक कार्यक्रम में मेरी तैयारी मेरे परिवार के प्रत्येक सदस्य कराते थे और उस दिन मैंने किसी को बताए बगैर एक कविता की कुछ पंक्तियां याद करके अपनी कक्षा अध्यापिका को अगले दिन के प्रार्थना सभा के लिए अपना नाम दे दिया। फिर अगले प्रातः पूरे उत्साह एवं आत्मविश्वास के साथ स्टेज पर पहुंची और जब मैं दो हजार छात्र-छात्राओं एवं अध्यापक गण को देखी तो कविता के शीर्षक के अलावा मुझे कुछ भी याद नहीं रहा। 
                 मैंने  कांपते हुए होठों से मात्र पहली लाइन ही बोल पाई थीं कि इस दृश्य को देखते ही मेरे कक्षा अध्यापिका को समझने में देरी नहीं लगी और मेरी उस एक लाइन के लिए तालियां भी बच चुकी थी। मगर उन तालियों की  गूंज में वो बात नहीं थी जो कि मै हर रोज सुबह में बोलने के लिए प्रेरित करती  थी । ऐसेअचानक से मेरे सिर्फ एक लाइन के बाद शून्य हो जाने से मई डर सी गए और निचे देखने लगी।
                   मेरी आँखों में पानी भर आए  थे और  मैं सिर नीचे किए हुए स्टेज से वापस आ गई।  यह घटना परिवार मैंने किसी  दिन परिवार के किसी भी सदस्य को नहीं बताई थी । एक दिन अभिभावक सभा में मेरी कक्षा अध्यापिका ने इस  पूरी घटना मेरी मां को बताया । उस दिन शाम को जब मेरी मां ने इस घटना के बारे में पूछा तो डरते हुए सभा की मैंने पूरी बात बताई कि जब प्रातः तालियों की गूंज सुनाई पड़ती थी तो  मेरे भीतर एक अलग सा उत्साह और ललक भर जाता था और मुझे भी बोलने की बहुत इच्छा रहती थी। 
                  इसलिए मैंने भी अपनी पूरी कोशिश की थी । जबकि  मुझे यह डर था कि कहीं इन  बातो को लेकर मेरी मां मुझसे नाराज ना हो जाय ,लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं हुआ और मेरी माँ मुझसे बिल्कुल भी नाराज नहीं हुई बल्कि मेरी तारीफ की कि तुमने कुछ नया करने का प्रयास किया। उन्होंने ने मेरा हौसला बढ़ाते हुए कहाँ कि स्टेज पर तो बड़े-बड़े लोग भी कांप उठते हैं  और तुम तो अभी नन्ही बच्ची हो और तुमने ये साहस किया जो की कबीले तारीफ हैं ।  हां एक बात अवश्य याद रखना  कि कोई भी कार्य करने से पूर्व पूरी तैयारी के साथ करना चाहिए और बड़े एवं अनुभवी लोगों से सलाह एवं आशीर्वाद लेना चाहिए क्योंकि सलाह लेने से गलतियां नहीं होती और आशीर्वाद से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। उस दिन की ये  छोटी घटना पूरे जीवन के लिए एक सीख थी। आज भी जब मैं किसी विद्यार्थी को देखती हूं तो मुझे बचपन की घटना सामने दिखाई देती  है|             
                   बचपन की वो यादें कितनी मीठी और प्रोत्साहित करने वाली होती हैं। हमें हमेशा अपने जिंदगी की हर एक  घटनाओं को याद रखना चाहिए ओर सीखना के लिए तत्पर रहना चाहिए । मुझे लगता हम सभी के  जीवन में अच्छी अच्छी यादें होती हैं। मेरी यह मीठी याद आपको कैसा लगा और मई चाहती हु की आप भी कमेंट सेक्शन में अपने यादों को साझा करें। 

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                                                                            धन्यवाद 😃
लेखक 
के. ब्राह्मी 😊
संपादक 
रीतेश कुमार सिंह             
                                 
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                                                    (बचपन की यादें भाग -२) 


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14 thoughts on “Childhood Memories : Part -1 (बचपन की यादें भाग -1)”

  1. बहुत बढ़िया लिखा है आपने ।बच्चों की जरूरत एवं अभिलाशवो को समझकर प्रोत्साह करनेवाले उन माता पितावो को मेरा सलाम।

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