Childhood Memories : Part -4 ( बचपन की यादें :भाग -4 )

” ख़ामोशी “
क्या महत्वकांछाएं परिस्थितियों से भी बढ़ कर हैं ?
(Silence: Are the wishes are more important than the circumstances ?)
                      

‘ कई बार हम बिना कठिनाइयों को समझे ही उसका हल लेके तैयार रहते हैं ,कभी कभी ऐसे व्यक्तियों के बारे में  मै  सोच के एक अजीब से उलझन में पड़ जाता हूँ ।

                       प्रिय पाठको ,बचपन की याद भाग – 4 में ,मैं आपसे एक  ऐसे याद को शेयर करना चाहता हूं जो मीठी तो नहीं है किन्तु आज के अभिभावको के लिए बहुत ही अच्छा सबक  है। ऐसा कई बार होता है कि हम सोचते कुछ और हैं और उसका परिणाम कुछ और ही आता है और जब परिणाम हमारे  सामने होता है   तब तक समय हमारे हाथों से निकल चुका होता है।    
                 
                      प्रत्येक अभिभावकों से यह निवेदन है कि इस लेख के पढ़ने के बाद वह ऐसा घटना पर विचार करें और अपना व्यक्तिगत राय को  साझा करें।

                     बात एक छोटे से बच्चे की है जो क्लास -3 में था और वह गांव के स्कूल में पढ़ाई कर रहा था वह पढ़ने में होशियार तो था और प्रत्येक विषय में उसका प्रदर्शन भी अच्छा रहता था ,बातचीत में भी वह काफी प्रतिभाशाली था। उसके पिताजी हमेशा एक शहर के अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाना चाहते थे ताकि उसकी पढ़ाई में और सुधार हो सके।   
                        वह बच्चे की शिक्षा को लेकर हमेशा से ही बहुत चिंतित रहते थे एवं विद्यालय के प्रिंसिपल से हमेशा राय भी लिया  करते थे उस बालक का उस स्कूल में कक्षा तीन तक काफी अच्छे से पढ़ाई चल रहा था इस वजह से प्रधानाचार्य भी उनकी  ऊंची उम्मीदों को लेकर सकारात्मक राय दिया करते थे।

                      कोई भी अच्छा अध्यापक हमेशा ही विद्यार्थी के उज्जवल भविष्य के लिए ही कामना करता है और यदि अभिभावक भी अच्छे रहे तो बच्चो के भविष्य  लिए इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है। जब भी उस बच्चे के अध्यापक विद्यालय में आते तो प्रिंसिपल साहब से एक ही बिषय पर चर्चा करते रहे थे। कि काश मै अपने बेटे को एक बड़े शहर के अच्छी स्कूल में भेज पाता। 

                      अचानक  कक्षा 4 में पहुंचने के पहले ही वह बालक को बेंगलुरु भेज दिए और आने वाले साल में एक अच्छे स्कूल में प्रवेश भी दिला दिया। बड़ी उम्मीदों के साथ उन्होंने यह कठिन निर्णय लिया कि इतनी छोटी उम्र में भी उसे इतने दूर और रिश्तेदार के यहां रखना था।

                         उसके उज्जवल भविष्य को लेकर पिता इतने दृढ़ निश्चय कि उन्होंने कभी भी अपने निर्णय को गलत नहीं समझा ना ही दोबारा उस पर विचार किया।संजोग वश कुछ वर्ष बीतने के बाद जब वह बच्चा अपने पिता के साथ अपने पुराने स्कूल में गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में  आया हुआ था  , और  उसके पिता ने उसको प्रधानाचार्य जी से भी मिलाया । मै भी वह संयोग से कार्यक्रम में सम्मिलित था। प्रधानाचार्य जी उससे मिलकर काफी खुश हुए किंतु उनके चेहरे  पे एक सिकन सी आ  गई ,उन्होंने ने मुझसे उदासी भरे भाव से पूछा कि  इस बालक में  ऐसा क्या परिवर्तन हुआ है जो इस मासूम के  पिता को यहां के विद्यालयों में नहीं हो मिल  सकता  था।  मै  एक दम  चुप सा रह गया। 

प्रिंसिपल साहब  ने महसूस किया कि बच्चे में कई परिवर्तन आ चुके हैं जिसमें अच्छे कम थे और मानो  कमियां उस में घर कर गई हो । बैंगलोर में  उसने क्या किया ,क्या नहीं किया ,उसके पिता को भी नहीं पता होगा शायद, ऐसा मुझे प्रतीत हो रहा था। 
                          मैंने इस विषय में कुछ और चर्चा नहीं की है क्योंकि मेरे कहने का मतलब वहां कुछ भी हो सकता था जिसका असर बच्चे पर भी पढ़ सकता था लेकिन यह बात जरूर था कि  जिन उम्मीदों के साथ उसके पिता ने उसे वहां भेजा था ,वे उम्मीदें पूरी नहीं हो सकी और आज कई वर्षों बाद भी वह बालक अपना भविष्य नहीं सुधार सका मुझे इसका बहुत पछतावा रहा,ऐसा मुझसे कहते हुए प्रिन्सिपल साहब  रुक से गए।  मैंने इन बातों पर विचार किया कि एक बच्चा जो यहां प्रतिभावान था आखिर उसमें ऐसे क्या परिवर्तन आए होंगे जिसके कारण उसके साथ ऐसा हुआ।

                         मुझे ऐसा लग रहा था कि बच्चा अपनों से अचानक दूर होने की वजह से अकेलेपन का शिकार हुआ होगा और वह बात करने में भी झिझक रहा था।  उसके पुराने दोस्त उससे बात कर रहे थे , वह खुश भी था ,पर वह बात नहीं कर प् रहा था ,मानो  एक अजीब सी खामोसी हो जो उसे आगे बढ़ने से रोक रही थी। 
 बच्चे अकेले होने पर दूसरों से अपनी भावनाओं को साझा करने में अक्षम महसूस करते हैं बच्चे अपने माता-पिता के साथ ज्यादा खुश रहते हैं और उनके माता-पिता भी अच्छे से ध्यान दे पाते हैं अक्सर ऐसा होता है कि जैसा हम सोचते हैं वैसा कुछ परिस्थितियों के कारण हम उन्हें बदल भी नहीं पाते लेकिन एक विद्यार्थी के भविष्य के बारे में गहराई से सोचा जाए तो बीता हुआ समय उसके लिए बहुमूल्य  होता है।
                       जो कि उसके भविष्य के लिए स्वर्णिम काल होता है, इस समयों में वह जो भी सीखता है उसी के आधार पर उसके भविष्य का निर्माण होता है
                         अतः माता-पिता को अपने बच्चों के भविष्य के लिए कोई भी निर्णय  चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों ना हो, हमें काफी सोच समझ के बिना किसी जल्दबाजी के उन पर होने वाले प्रभाव पर  विचार करने के बाद  ही  निर्णय लेना चाहिए।
  
              ” बच्चे  भूल जाते है की अपने उन्हें क्या  सिखाया किन्तु वो ये कभी  नहीं भूलते की आप क्या  थे। “

                   मुझे यह पूर्ण विश्वास है कि मेरे यह लेख आप सभी को उत्साहित करते है और आपसे यही उम्मीद करता  हूं कि आपके जीवन में भी घटी  हुई वह घटना जो आपके विचारों को बदल दी हो उस घटना को हम सभी पाठकों से अवश्य शेयर करें।आप हमारे वेबसाइट को सब्सक्राइब करें ,और आगे शेयर करे  ताकि हम अपने  लक्ष्य को पाने में सफल हो सके। 

धन्यवाद् 

रचनाकार 
   के. कविता ,रीतेश कुमार सिंह 

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By Reena Singh

I’m a passionate storyteller and lifelong learner who believes that words can spark change. Through A New Thinking Era, I share motivational quotes, inspiring stories, and transformative insights to help people rediscover their purpose, build inner strength, and stay grounded in hope — no matter what life throws at them. This blog isn’t just a space for content — it’s a movement to help people think deeper, live better, and rise stronger. Every post is created with the belief that a single thought can shift your whole day — or even your life. When I’m not writing, I’m reading, reflecting, and dreaming up new ways to turn wisdom into action.

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