महिलाएं : एक अनकही योद्धा
तेरे माथे पर यह आंचल बहुत ही खूब है।
“महिलाओं के रूप में हम क्या कर सकते हैं, इसकी कोई सीमा नहीं है।”
मिशेल ओबामा
आज वह मुट्ठी खुल चुकी है ,जो सदियों से बंद थी। इस मुट्ठी में कई सपने हैं जो स्वयं तक ही सीमित नहीं है ,बल्कि यह सपने अपने गर्भ में छिपाए रखती हैं क्योंकि यह सतरंगी इन्द्रधनुष हैं , उम्मीदों का हौसला है ,जमाने को बदलने का इरादा है हर खालीपन को खुशियों से भरने का एक लंबी उड़ान है।
स्त्रियों की खुली मुट्ठियाँ जब थाम लेती हैं एक दूसरे का हाथ और ठान लेती हैं कुछ कर गुजरने को तो यकीन मानिए उनके लिए इस दुनिया में कुछ भी नामुमकिन नहीं रह जाता ।
यह कहानी मेरी यादों की सफर में एक ऐसी कड़ी है जो मुझे अक्सर याद दिलाती है कि इसे औरों के साथ साझा करने की प्रेरणा देती हैं ।
मेरी एक सीनियर थी जो काफी खूबसूरत थी और पढ़ने में भी काफी अच्छी थी , उनकी आवाज में एक खनक सी थी , जो सुनने में काफी सुरीली और मीठी थीं ।
उनका नाम लेते मुझे अक्सरअमेरिकन अभिनेत्री (लोरेटो यंग)का कथन याद आ जाता है जो उन पर बिलकुल सटीक बैठता है-
“खूबसूरत स्त्री खुद अपनी अनुयाई होती है
यह किसी भीड़ की हिस्सा नहीं बनती।”
जब मैं फाइनल ईयर में थी तो उनके शादी की खबर सुनने को मिला तो मैं काफ़ी अचंभित हो गई थी कि इतनी जल्दी शादी क्यों ? अभी तो उसे और पढ़ाई करनी थी , उन्हे कई सफलताये पानी थी। मैं उनके लिए जाने क्या क्या सोचने लगी , मुझे उस समय मानो ऐसे लगा कि जीवन रुक सा गया हो।
मेरा मन सवालों से घिरा हुआ था कि क्या एक लड़की शादी के लिए ही जीती है ? क्या उनके लिए शादी ही जीवन का एकमात्र लक्ष्य होता है।
ये समाज के कई ऐसे खोखले नियम है जो स्त्रियों के पैरो में बेड़िया तो डाल देते है ,किन्तु अगर स्त्री अपने जीवन कुछ करने की इरादा बना ले तो मुझे लगता है स्वयं ईश्वर भी मंजिल पे हाथ फैलाए इंतजार करते है।
स्त्रियाँ अपने जीवन में एक छोटी उम्र से ही कितनी जिम्मेदारियों को निस्वार्थ निभाती हैं। किन्तु ये समाज कोई मौका नहीं छोड़ता उन्हें अपना हुनर दिखने से रोकने में। एक बेटी जो अपने जीवन में पुत्री, पत्नी ,माँ आदि रूपों में ईश समाज को सजोने में लगी रहती हैं , अपनी इच्छाओ को दबा के दुसरो के लिए अपनी पूरी जिंदगी बिता देती हैं।
आखिर समाज है क्या ? समाज हमसे ही तो मिलके बना हैं। फिर हम खुद के बेटियो लिए बेड़िया क्यों बना के रखे हैं ? हमें इन बातो पे गौर करना चाहिए।
पुराने समय में गृहस्ती की छोटी चार दिवारी का दायरा ही एक महिला के जीवन की परिधि होती थी। मैं इन बातो को लेकर कई दिनों तक में सोचती रही। यह भी सोचती थी कि एक हाउसवाइफ जो घर के कामकाज को संभालती है , उसके पास घर में लिए जाने वाले किसी निर्णय पर उसकी कोई सहमति होती है की नहीं ?
आज कई वर्षों बाद मेरे इन प्रश्नों का जवाब मुझे बहुत अच्छी तरीके से मिल गया, अचानक उनसे कई अरसो के बाद उनसे मेरी बात हुई। उनसे बात करके मेरे पुराने दिनों की यदि तजा हो गई थी।
मुझे तो ऐसा लग रहा था कि ये खूबसूरत अल्फाज उनके लिए ही बने हैं-
“तेरे माथे पे ये आंचल बहुत ही खूब है पर इस आंचल से अगर परचम बना लेती तो ही अच्छा था। “
उन्होंने अपनी समर्पण से अपनी बेटी को इतने अच्छे तरीके से संवारा कि पहले ही प्रयास में मेडिकल की परीक्षा में सरकारी सीट प्राप्त कर ली , जो की बहुत कठिनाईयों से लाखो में एक को मिले । मेरी उनसे काफी देर तक उनसे बाते चली और मुझे बहुत ख़ुशी का अनुभव हो रहा था।
उसने नवी कक्षा तक बेटी को किसी भी प्रकार का ट्यूशन के लिए नहीं भेजा था और साथ ही साथ उनके पति भी नौकरी के वास्ते हमेशा ट्रांसफर होते रहे। इन परिस्थितियों में भी अकेले ही गुजरात के वडोदरा शहर में स्थाई रूप से रहते हुए मेडिकल परीक्षा से पूर्व मात्र 1 महीने की तैयारी के लिए बेटी को कोचिंग भेजी। आज बेटी भोपाल के ऐम्स से मेडिकल कर रही है। बेटा 10 दसवीं कक्षा में है। मेरे सभी प्रश्नों का हल मुझे अचानक ही मिल गया ।
“जो अपने कदमो की काबिलियत पे विश्वास रखते हैं
मंजिल हमेशा उन लोगो का इंतजार करती हैं “
मुझे नहीं मालूम कि मैं इस सिलसिले को आगे कहां तक ले जाने में सफल हो सकूगी ,लेकिन एक बात जरूर है कि मै ऑफिस के 8 घंटे बिताने के बाद वक्त ही गिना हुआ बचता है और जो बचता भी है तो वह इस अपराध बोध में बच्चों के साथ बिताती हूं कि नौकरी के लिए दिया गया वक्त बच्चों के हिस्से में की गई कटौती है।
स्त्रीया अपने जीवन में हमेशा ही संघर्ष करती आई हैं। आज जब उनके बारे में सोचती हूं तो मुझे यह सोच के गर्व महसूस होता है कि अपने लिए तो सब कोई जीता है औरों के लिए अपने जीवन को न्यौछावर करना ही सबसे बड़ा त्याग है। एक डॉक्टर उनकी बेटी होगी , मगर इस दुनिया को उन्होंने कितना बड़ा उपहार दिया वो एक बहुत बड़ी बात हैं। शायद समाज इसके बारे में कभी न सोचें , किन्तु हमें इस वास्तविक घटना से खुद को बदलना चाहिए। क्यों कि डॉक्टर बनाने के लिए कितने मां-बाप अपने बच्चो के प्रति कितने ख्वाब देखा करते हैं। कितने पैसे खर्च करते हैं उसके बावजूद भी बच्चों को सीट नहीं मिल पाती है।
“Girls present is future of our generation.”
आज इस सोशल प्लेटफार्म ने इस याद को शेयर करने का अवसर प्रदान किया। मेरा अपना , अपना आप ढूंढ कर दिया और एक ऐसा फलक दिया जहां मैं स्वयं को अभिव्यक्त कर पा रही हूं, उम्मीद करती हूं कि मेरी यह यादों का सफर आप सभी को पसंद आएगी।
कृपया इसे साँझा कर औरो तक पहुचाये ताकि समाज के हर लोग इन पहलुओ से रूबरू हो पाए।
धन्यवाद