Transgender Gauri Sawant and his amazing journey of life

गौरी सावंत:एक अनोखी मां
 (An Incredible Mother)


“खुदी को कर बुलंद इतना की हर तक़दीर से पहले 
खुदा बन्दे से खुद पूछे की तेरी राजा की है। “
  —आलम इक़बाल 

समाज का आईना (Mirror of society):

आलम इक़बाल साहब  ने सही कहा है कि अगर तुम कुछ करने का ठान (firm decision)लो तो हर मंजिल आसान हो जाती है।  सुनने में तो “आसान ” शब्द  बहुत अच्छा लगता है ,लेकिन इसके पाने के लिए एक  इंसान अपनी पूरी जिंदगी झोक देता है । 

जी हां आज हम ऐसे ही इंसान कि बात करेंगे जो हमारे समाज के द्वारा यानी हमारे द्वारा बहिष्कृत हो जाता है और हम उनके पास जाने से भी कतराते है।उनका जीवन सिर्फ घूम घूम के खाना ,पीना में ही रह जाता है। वे समाज से अलग रहते है। 

क्या  बीतता  है एक मा बाप पे जब उनका बच्चा कुछ घंटो के लिए बिना बताए गायब हों जाता है।पूरा परिवार उठ खड़ा होता है जैसे किसी की जान ही चली गए हो। मिलने पर  बिना पूछे ही गले से  लगा लेते हैं। 

एक ऐसा बच्चा जिसको उसके ही  मा बाप ही अपनाने से इंकार कर दे  तो सोच के भी रूह काप जाती है।वो बच्चा कैसे रहेगा , कहा जायेगा ,क्या वो छोटी उम्र में बाहर की दुनिया में अपनी जगह बना पायेगा। तमाम उलझने आती  है खयालो में!

 जी हां ये कहानी एक ट्रांसजेंडर (किन्नर/Transgender ) श्री गौरी सावंत की है जो अपने बचपन में तमाम मुश्किलों को खेलते हुए अपने घर से निकाल दिए जाने पर भी कुछ करने का हौसला रखा। शायद गौरी सावंत इस समाज को या अपने माता पिता को कभी दिखी ही नहीं की वो भी एक इंसान है, शायद  हमसे भी अच्छी । 

How to change our life ? Gauri life ,being a transgender is a best example.

गौरी सावंत का बचपन (Childhood of Gauri Sawant/what transgender means?) :

गौरी सावंत का बचपन का नाम गणेश था , जों एक माध्यम वर्गीय परिवार में पुणे में लड़के के रूप में पैदा हुआ  । अपने मा बाप का पहला लड़का जो अपनी  एकलौती बहन के १० साल बाद पैदा हुआ।घर में खुशियों का माहौल था।लेकिन ५ वर्ष की उम्र में ही मा का साया  भी उठ   गया। 


8 सालो तक पूरी तरह लड़के के रूप में जीने कि कोशिश किया।लेकिन कहीं ना कहीं गौरी के अंदर की नारीत्व अब बाहर आने लगा था।पिता  पुलिस विभाग (एसीपी) में थे।जब धीरे धीरे गौरी के व्यवहार में परिवर्तन आने लगे ,समाज की उंगलियां उठने लगी तब इन बातो को पिता भी बर्दाश्त नहीं कर  पा रहे थे  ।

धीरे धीरे पिता का व्यवहार भी नफ़रत में बदलता गया। एक बार उनके साथ रास्ते में जाए हुए वो एक शब्द “बायेला” सुनकर  बाइक से गुस्से में उतरे और एक लात  दे मारी और छोड़ के चले गए ,ये शायद गौरी के लिए उसके जिंदगी का पहली मार थीं , तब गौरी सिर्फ ८ की थी। 

गलती गौरी के पिता की नहीं  बल्कि इस समाज की है जिसने उसके पिता के प्यार से जुदा  कराया । गौरी के पिता उससे आंख मिलाना भी बंद कर दिए ,अब गौरी अकेला महसूस कर रही थी। वो अपने जज्बातो को किसी से कह भी नहीं पा रही थीं , जिंदगी में घुटन सा रहने लगा। 
एक घटना जो कि बंचपन में गौरी के साथ हुआ। बच्चों के समूह में बात ही बात में गौरी ने के कहा  कि मै  बड़ा होकर एक अच्छा आई (मां) बनूंगी। सारे हस के बोले लडके मा थोड़ी ना बनते है। गौरी हमेशा से ही अपने अंदर औरत को महसूस किया , लड़कियों के साथ खेलना पसंद था, उनके कपडे पहनना पसंद था। 

समाज के ताने और पिता का दुरभाग्यपूर्ण व्यवहार ने गौरी को ये करने पे मजबूत कर दिया  और वह 18 की उम्र में घर को छोड़ दिया। घर से सिर्फ 60  रूपए लेकर दादर पहुंची। स्टेशन  का वो एक रात बहुत अनोखा था ,दर्द के साथ एक आजादी भी थी।

गौरी को एक जगह आपने कम्युनिटी में ही गुरु जी से मुलाकात हुए , और वो वह रहना शुरू कर दी। जिंदगी पूरी तरह बदल चुकी थी ,कहा आलीशान घर और कहा एक कमरे में 4 लोगो की जिंदगी। 

गौरी ने अपने जिंदगी से कभी हार नहीं माना। गौरी को कभी तलिया बजा के चौराहे ,नुक्कड़ पे भीख  मांगने का शौक नहीं पाला । वो ख़ुद बदलना चाहती थी अपने जैसो को समाज में एक पहचान दिलाना चाहती थीं।  और उसने किया भी।वो कई तरह के काम किए जैसे हेल्थ अवेयरनेस को लेके कम्पैन करना ,ना की तालियों के भरोसे जिंदगी जीने की सोची।

(A best example for us how we can do good in difficult time? Gauri Sawant changed the way of people’s thinking about transgender meaning)

गौरी का जीवन एक एक्टिविस्ट की तरह हैं (Gauri Sawant life as an social activist) :


गौरी ने सन् २००० में अपना एक एनजीओ बनाया ,और जिसका उद्देश्य था सुरक्षित यौन संबंध बनाने की जानकारी देना और ट्रांसजेंडर कम्युनिटी को एक सही रह दिखाना ।

✔ 2014  में गौरी सावंत ने ,जो की पहली किन्नर थी जिसने कोर्ट में बच्चा  गोद लेने के अधिकार केलिए पेटिशन के लिए अर्जी दिया डाला। 

  उसने NALSA(NATIONAL LEGAL SERVICE AUTHORITY) केस में भी अर्जी दिया और जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर को थर्ड जेंडर का उपाधि दिया। (Transgender Protection of Rights Bill 2016)

✔ गौरी का साथ न ही उसके  परिवार  ने दिया और ना  ही  समाज ने ,फिर भी उसने समाज को बदलने का कोशिश नहीं छोड़ा। 
(संछेप में,

What is Transgender Protection of Rights Bill 2016-

 “यह एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति के खिलाफ भेदभाव को प्रतिबंधित करता है, जिसमें रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, सार्वजनिक वस्तुओं और सुविधाओं तक पहुंच आदि के संबंध में अनुचित व्यवहार या सेवा से वंचित करना शामिल है ।”

)
 सामाजिक कार्यकर्ता गौरी सावंत ने सेक्स वर्कर्स के बच्चों के लिए एक पालक घर बनाया । जिसका नाम “नानी का घर” दिया। उसने 50 बच्चो तक रखने का कोसिस किया है , देखभाल बुजुर्ग किन्नर समुदाय करता है। गौरी काफी मेहनत  कर रही है ताकि बच्चो के जीवन में किसी भी प्रकार के कमी न आये  ,फण्ड रेज के लिए “कौन बनेगा करोड़ पति “में भी जा चुकी है। 

 गौरी सावंत हमेशा अपनी ट्रांसजेंडर कम्युनिटी को दर्शाया है न की अकेले को। 

गौरी  माँ  बनने का ख्वाब :


“गौरी कहती है की माँ सिर्फ बच्चे नौ महीने पेट में रखने से नहीं होता , मातृत्व एक भावना है ,इसे लिंग विशेष से जोड़ना ठीक नहीं है। “
 गौरी ने 2008 में गायत्री नाम की छोटी 4 साल की बाची को गोद लिया। उस  बच्ची माँ कोलकाता में सोनागाछी (रेड अलर्ट एरिया ) एक सेक्स वर्कर  थीं। उसकी  एड्स के कारन मर चुकी थी और बच्ची को  सिर्फ  बिकने से बचने के लिए झूठ  बोल के अपने पास लाया , जिसके लिए दो लाख रूपए चुकाए। उसने कभी  नहीं  सोचा था  कि वो एक माँ बन पाएगी। 
 गौरी सावंत को विक्स कंपनी के एडवेर्टीस्मेंट से काफी मदद मिला। 

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निष्कर्ष :

हमें ें सवालो के जवाब स्वयं से पूछना चाहिए (Questions for our society to adapt the change):

1 -क्या गौरी को लगातार हो रहे मानसिक दिक्कतों से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता ?

2 – क्या गौरी और उसके कम्युनिटी के लोगो को अपने घरो में माँ बाप के साथ रहने का अधिकार नहीं है ?

3 -क्या गौरी जैसे लोग  नुक्कड़ों पे खड़े होकर भीख  मांगने के लिए बने है ? सर्कार ने तो कानून बना दिया ,की हम अपने दिलो में उनके लिए जगह बनाएंगे ?

4 -समाज की मारी गौरी  ,समाज को बनाने का काम क्यों कर रही है?

5 – क्या समाज हमसे अलग है ,? की हम साथ से रहे है उनका?

ऐसे बहुत से सवाल है जिनपे हम विचार करने के लिए मजबूर है लेकिन और जब तक हम इन सवालों के जवाब नहीं  ढूढेंगे  या हम इन  बातो पे गौर नहीं करेंगे तो हमारा समाज प्रगति कर पायेगा ? 

क्या हम समाज में  चली आ रही पुरानी पध्दतियों को बदल कर गौरी जैसे लोगो की मदद कर पाएंगे ?शायद ये कदम  हमे खुद ही उठाना पड़ेगा  उनको इज्जत देने के लिए ताकि वो भी समाज के साथ रहे न की एक अलग दुनिया में। 

ट्रांसजेंडर को हमें उतनी ही इज्जत देनी चाहिए जितनी हम खुद को देते है। गौरी ने अपने आत्मविश्वास को बनाये रखा, कठिनाईओ से लड़ा। लेकिन ऐसे बहुत ट्रांसजेंडर है जो शिक्षा के आभाव में अपना रास्ता भटक गए है। 

हमें खुद के लिए, इस  समाज के लिए एक कोशिश तो करनी होगी , मुझे विश्वास है की आप लोगो को ये प्रेरक  सच्ची जीवन की कहानी अपने जीवन में अच्छा करने और कठिनाईओ से लड़ने की प्रेरणा देगी। 

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Disclaimer:
हम यहाँ किसी भी तरह का गलत सन्देश का समर्थन नहीं करते न ही किसी जाती विशेष का आलोचना कर रहे है। हमारा उद्देश्य समाज में लोगो को एक सही सन्देश पहुंचना हैं। हम अंगूरी स्वांत के जिंदगी के बारे में उनके द्वारा बातये गए घंटनाओ का ही उल्लेख करने की कोसिस किये है,अगर कुछ गलत होता है तो इसकी जिम्मेदारी हमारे वेबसाइट की नहीं है। 

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By Reena Singh

I’m a passionate storyteller and lifelong learner who believes that words can spark change. Through A New Thinking Era, I share motivational quotes, inspiring stories, and transformative insights to help people rediscover their purpose, build inner strength, and stay grounded in hope — no matter what life throws at them. This blog isn’t just a space for content — it’s a movement to help people think deeper, live better, and rise stronger. Every post is created with the belief that a single thought can shift your whole day — or even your life. When I’m not writing, I’m reading, reflecting, and dreaming up new ways to turn wisdom into action.

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