बचपन की यादें भाग -2 (Childhood Memories :Part -2)

बचपन की यादें  (भाग -2 )

अनुशासन: लक्ष्य के अलावा मुझे कुछ भी नहीं दिखता है।
(Discipline: I see nothing but goals.)


     “हर पल हर वक्त सोचती हूं कि मां-बाप इस कदर कठोर क्यों होते हैं हम गहरी नींद में होते हैं और वे उस वक्त भी नहीं सोते हैं ,आज इतने वर्षों में यह बात समझ में आया “
                     प्रिय पाठको मेरे पिछला लेख “बचपन की यादे -भाग १” को इतना सराहना देने के लिए बहुत ही आभारी हूँ। आपके विचारो  को जान के मुझे बहुत खुशी हो रही है ।  आपकी उत्सुकताओं से  मुझे अपने बीते  दिनों के अनुभवो को साझा करने में बहुत प्रोत्साहन मिलरहा हैं। मेरा आपसे निवेदन है की सबके जीवन में छोटी छोटी घटनाएँ होती है जिनके  याद आने भर   से  ही मन में एक ख़ुशी  की लहर सी दौड़ जाती हैं। मैं उन्ही यादो को आपसे साझा करने  के लिए आतुर हो रही हूँ।  
              यह बात उन दिनों की है जब मैं  नवी  कक्षा में थीं और मैं  उस समय हुए घटना को समझ नहीं पा  रही थीं।  मैं प्रायः यह सोचती थी कि सबके मां-बाप इतने कठोर क्यों होते हैं, क्यों जब हम रातों को गहरी नींद में आराम  से सो रहे होते थे ,  वे लोग  तब भी सोए नहीं रहते  थे। 
                       आज इतने वर्षों पश्चात  यह बात समझ में आई ,की उनका यह समर्पण तो  हमारे  भविष्य को बेहतर बनाने के लियें था।  हमें अपने लक्ष्य तक पहुंचाने में  उन्होंने आजतक कितना परिश्रम   करना पड़ा हैं  ।  लक्ष्य के भीतर एक खूबसूरत सा एहसास छिपा हुआ है, महाभारत की वह घटना जब अर्जुन को अपने लक्ष्य के अलावा कुछ भी नहीं दिखलाई देता है, यह घटना प्रत्येक व्यक्ति को लक्ष्य के प्रति समर्पण का एहसास दिलाता है।लक्ष्य को हासिल करने में कितनी मेहनत, कितनी लगन और कितनी अनुशासन की आवश्यकता होती है एक सफल व्यक्ति से पूछ कर देखिए।               
     बचपन की यह घटना लक्ष्य के प्रति समर्पित  होने की  है। मैं और मेरा एक  सहपाठी जो कि बचपन से एक साथ कक्षा 10 तक अध्ययन किए। मेरे सहपाठी के पिता एक अध्यापक के साथ साथ कठोर पिता भी थे। प्रायः देखा करती थी जब भी उनके पिता विद्यालय  आते थे तो वे प्रत्येक अध्यापक से स्वयं  जाके मिला करते  थे और मेरे सहपाठी के बारे में पूरी जानकारी लिया करते थे। ज्यादातर उसे डांट और मार ही पड़ती रहती थी  और  मुझे ये  बात बिलकुल समझ में नहीं आती थी की ऐसा उसके साथ क्यों होता है ,जबकी  वह पढ़ाई में बहुत होशियार था और अन्य बच्चों की तुलना में उसे हमेशा ही अच्छे अंक प्राप्त होते थे। 
                                         बात कक्षा नौवीं की थी ,परीक्षा समाप्त हो चुके थे और प्रत्येक विषय के अंक अध्यापकों द्वारा  बताए  जा रहे थे। आज उसके  पिता ही रसायन विषय के अंक बता रहे थे। मुझे इस विषय में 24 अंक मिले और मेरे सहपाठी को 18 अंक ,कुछ ऐसा उनके मन में हुआ कि जैसे ही उन्होंने यह अंक बताएं तुरंत उनके हाथ से डस्टर छूटा  और जाकर मेरे सहपाठी के सिर पर लग गया। उस पल में किसी को भी कुछ भी समझ में नहीं आया कि ऐसा उन्हें  क्या हुआ की वे इतने नाराज से हो गए ,लेकिन मुझे इस  घटना  पर बहुत ही दुख हुआ क्योंकि मेरे सहपाठी के मार्क्स प्रत्येक विषय में काफी अच्छे थे ,लेकिन सिर्फ  रसायन विषय को लेकर उसे  इतनी डांट पड़ी थी कि आज भी मुझे वह अंक और  डांट अच्छी तरह से याद है।            
                              आज मुझे यह बात पूरी तरह से समझ में आ गया कि उनके पिता इतने कठोर क्यों थे क्योंकि आज मेरा सहपाठी एक सफल  पीसीएस अधिकारी है। उनका कठोर अनुशासन ही आज उसे सफलता की चरम सीमा तक पहुंचाया।       
                              आज के परिवेश में बच्चो के परवरिश के तरीके बदल गए हैं। संभ्रांत परिवार के बच्चों को प्रत्येक सुख सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है। छोटे-छोटे बच्चों के पास ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स हाथों में थमाई जा रही है जिसका परिणाम भी भयावह  हो रहा है।  बच्चे प्रत्येक समय परिवार के सभी सदस्यों के बीच में भी रहकर एकांत सा महसूस करते हैं। अलग रहना ,एकांकी जीवन बिताना , उलझनों में रहना आम बात हो गए है।                                    
                              वे फेसबुक ,इंस्टाग्राम, टिक टॉक, व्हाट्सएप पर अपना स्टेटस अपडेट करते रहते हैं। वे पलो में जीने लगे है  , बातो को अपने परिवार में कहने से डरते है।  1 आज के बच्चों के पास नाना -नानी या दादा -दादी की कहानियों को सुनने का वक़्त  नहीं है ,उन्हें यह सुनना बोरिंग सा प्रतीत होता है। इसका परिणाम भी बहुत ही भयावह हो रहा है क्योंकि यह बच्चे पल भर में कोई भी निर्णय लेने मैं पीछे नहीं होते हैं। लक्ष्य तक पहुंचने के लिए माता-पिता के अनुशासन को वे नकारात्मक भाव में ले रहे हैं। परिणाम स्वरूप ज्यादातर बच्चे डिप्रेशन के शिकार होते जा रहे हैं।                                                                                                           
                            आज हम सभी को  ,चाहे वो छोटा हो या बड़ा हो ,यह विचार करने की आवश्य्कता है कि कहीं अपने बच्चों को आधुनिक बनाने के वास्ते हम उन्हें शिक्षा , आचरण  के मूलभूत आवश्यकताओं से तो दूर नहीं कर रहे हैं।                                                        
                                 मुझे  Edgar Hoover का कथन याद आ रहा हैं कि 
                                    ” यदि घर में अनुशासन का पालन किया जाए तो युवाओं द्वारा किए जाने वाले अपराधों में 95% कमी आ जाती है। ”                                         
                             आइए हम सभी लोग आज यह विचार करें कि अनुशासन  का कौन सा ऐसा पाठ पढ़ाएं कि प्रत्येक बालक- बालिकाएं शिक्षा के मूल उद्देश्य को प्राप्त करते हुए लक्ष्य के प्रति समर्पित हो ताकि डिप्रेशन जैसे बीमारियों से दुर रहे ,आपसी मतभेदों से दूर रहे। अपने विचारो को खुल के अपने परिजनों से बात करे जिससे उन्हें परेशानियों का सामना करने में न झिझके और अपने परिवार ,समाज और  देश के उज्जवल भविष्य के बेहतर बनाये ।
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                               मुझे उम्मीद है कि आपको यह हिस्सा पसंद आएगा। जल्द ही हम भाग -3 लेकर आ रहे हैं। कृपया साझा करते रहें और प्रेरणा देते रहें।
                                                                     धन्यवाद 😃
लेखक 
के.कविता 
संपादक 
रीतेश  कुमार सिंह 

                              दूसरे भाग के लिए यहाँ क्लीक करे
                                    बचपन की यादें भाग -३ 

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By Reena Singh

I’m a passionate storyteller and lifelong learner who believes that words can spark change. Through A New Thinking Era, I share motivational quotes, inspiring stories, and transformative insights to help people rediscover their purpose, build inner strength, and stay grounded in hope — no matter what life throws at them. This blog isn’t just a space for content — it’s a movement to help people think deeper, live better, and rise stronger. Every post is created with the belief that a single thought can shift your whole day — or even your life. When I’m not writing, I’m reading, reflecting, and dreaming up new ways to turn wisdom into action.

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