दिल्ली का कालकाजी मंदिर ( Kalka Mandir, New Delhi)

दिल्ली का कालकाजी मंदिर ( Kalka Mandir, New Delhi)

दिल्ली हिन्दुस्तान की राजधानी तो है ही लेकिन दिल्ली प्रसिद्ध मंदिरों के लिए भी जाना जाता है। दिल्ली के प्रसिद्ध मंदिरों में अक्षरधाम मंदिर, श्री दिगंबर जैन लाल मंदिर, कालकाजी मंदिर, शीतला माता मंदिर ,इस्कॉन मंदिर, बांके बिहारी मंदिर आदि शामिल है।

कालकाजी मंदिर राजधानी दिल्ली का एक लोकप्रिय मंदिर है, जो माता काली को समर्पित है। कालकाजी का मंदिर दिल्ली के साथ पूरे देशभर में प्रसिद्ध है।

देश की राजधानी दिल्ली में स्थित मां कालका जी का मंदिर एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है, जहां पूरे साल देवी के भक्तों का आना-जाना लगा रहता है। मान्यता है कि पांडवों ने इस मंदिर में पूजा कर महाभारत युद्ध में विजय का आशीर्वाद प्राप्त किया था। इस मंदिर से जुड़े कई रहस्य भी हैं, जो आपको हैरान कर सकते हैं।

दक्षिण दिल्ली में स्थित यह मंदिर अरावली पर्वत श्रृंखला के सूर्यकूट पर्वत पर है, जहां मां कालका माता के नाम से विराजमान हैं।

कालकाजी माता का मंदिर शिद्धपीठों में से एक माना जाता है और नवरात्र के दौरान यहां एक से डेढ़ लाख श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर लोटस टेंपल और इस्कॉन टेंपल के पास स्थित है। 

कालकाजी मंदिर का इतिहास

कालकाजी मंदिर बहुत प्राचीन हिन्दू मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि वर्तमान मंदिर के प्राचीन हिस्से का निर्माण मराठाओं की ओर से सन् 1764 ईस्वी में किया गया था।

बाद में सन् 1816 ईस्वी में अकबर के पेशकार राजा केदार नाथ ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया था।

दिल्ली मे माता का 3000 साल पुराना मंदिर

मान्यताओं के अनुसार मंदिर 3000 साल से अधिक पुराना है। मान्यता है कि इस पीठ का स्वरूप हर काल में बदलता रहता है।

मां दुर्गा ने यहीं पर महाकाली के रूप में प्रकट होक असुरों का संहार किया था। कालकाजी मंदिर प्राचीनतम सिद्धपीठों में एक है।

मौजूदा मंदिर बाबा बालकनाथ ने स्थापित किया था। ऐसा माना जाता है कि वर्तमान मंदिर के पुराने हिस्से का निर्माण मराठाओं ने 1764 में करवाया था। बाद में 1816 में अकबर द्वितीय ने इसका पुनर्निर्माण करवाया।

महाभारत काल में श्रीकृष्ण ने पांडवों के साथ की थी अराधना

इस पीठ का अस्तित्व अनादि काल से है। माना जाता है कि हर काल में इसका स्वरूप बदला। मान्यता है कि इसी जगह आदिशक्ति माता भगवती ‘महाकाली’ के रूप में प्रकट हुई और असुरों का संहार किया, तब से यह मनोकामना सिद्धपीठ के रूप में विख्यात है।

मौजूदा मंदिर बाबा बालकनाथ ने स्थापित किया था। उनके कहने पर मुगल सम्राज्य के कल्पित सरदार अकबर शाह ने इसका जीर्णोद्धार कराया।

बीसवीं शताब्दी के दौरान दिल्ली में रहने वाले हिन्दू धर्म के अनुयायियों और व्यापारियों ने यहां चारों ओर कई मंदिरों और धर्मशालाओं का निर्माण कराया था। उसी दौरान इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप बनाया गया था।

ऐसा भी माना जाता है कि महाभारत काल में युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों के साथ यहां भगवती की अराधना की थी। बाद में बाबा बालकनाथ ने इस पर्वत पर तपस्या की। तब मां भगवती ने उन्हें दर्शन दिए थे। 

300 साल पुराना ऐतिहासिक हवन कुंड

कालकाजी मंदिर पिरामिड के आकार का बना हुआ है। मंदिर का केंद्रीय भाग पूरी तरह से संगमरमर से बना हुआ है। मंदिर में काली देवी की एक पत्थर की मूर्ति भी है।

अकबर द्वितीय ने इस मंदिर में 84 घंटे लगवाए थे। इनमें से कुछ घंटे अब मौजूद नहीं है। इन घंटों की विशेषता यह है कि हर घंटे की आवाज अलग है। इसके अलावा 300 साल पुराना ऐतिहासिक हवन कुंड भी मंदिर में है और वहां आज भी हवन किए जाते हैं।

कालकाजी मंदिर की विशेषता

कालकाजी के मुख्य मंदिर में 12 द्वार हैं, जो 12 महीनों का संकेत देते हैं। हर द्वार के पास माता के अलग-अलग रूपों का चित्रण किया गया है।

मंदिर के परिक्रमा में 36 मातृकाओं (हिन्दी वर्णमाला के अक्षर) के द्योतक हैं। माना जाता है कि ग्रहण में सभी ग्रह इनके अधीन होते हैं, इसलिए दुनिया भर के मंदिर ग्रहण के वक्त बंद होते हैं, जबकि कालकाजी मंदिर खुला होता है। 

दिन में दो बार होता है मां के शृंगार

माँ का श्रृंगार दिन में दो बार किया जाता है। सुबह के समय मां के 16 श्रृंगार के साथ फूल, वस्त्र आदि पहनाए जाते हैं, वहीं शाम को शृंगार में आभूषण से लेकर वस्त्र तक बदले जाते हैं। मां की पोशाक के अलावा आभूषण का विशेष महत्व होता है।

नवरात्र के दौरान रोजाना मंदिर को 150 किलो फूलों से सजाया जाता है। इनमें से काफी सारे फूल विदेशी होते हैं। मंदिर की सजावट में इस्तेमाल फूल अगले दिन श्रद्धालुओं को प्रसाद के साथ बांटे जाते हैं। मंदिर में बड़ी संख्या में लोग अपने बच्चों के मुंडन के लिए भी आते हैं। 

महाकाली ने रक्तबीज का किया था वध

मंदिर के महंत के अनुसार जब असुरों का प्रकोप बहुत बढ़ गया और वो देवताओं को सताने लगे तब देवताओं ने इसी जगह शिवा (शक्ति) की अराधना की।

देवताओं के वरदान मांगने पर मां पार्वती ने कौशिकी देवी को प्रकट किया, जिन्होंने अनेक असुरों का संहार किया, लेकिन रक्तबीज को नहीं मार सकीं। इसके बाद पार्वती ने अपनी भृकुटी से महाकाली को प्रकट किया, जिन्होंने रक्तबीज का संहार किया।

महाकाली का रूप देखकर सभी भयभीत हो गए। देवताओं ने काली की स्तुति की तो मां भगवती ने कहा कि जो भी इस स्थान पर श्रृद्धाभाव से पूजा करेगा, उसकी मनोकामना पूर्ण होगी। 

कालकाजी मंदिर की वास्तुकला

कालकाजी मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण ईंट और संगमरमर के पत्थरों से किया गया। इसका बरामदा 8 से 9 फुट तक चौड़ा है। इस बरामदे ने मुख्य मंदिर को चारों ओर से घेरा हुआ है।

मुख्य मंदिर के गर्भ गृह में माता का शक्ति पीठ विराजमान है। मंदिर के सामने बाहर आंगन में दो बाघों की मूर्ति है, जिसका निर्माण बलुआ पत्थरों से किया गया है। इन दोनों बाघों के नीचे संगमरमर का आसन बना हुआ है।

कालकाजी मंदिर में काली देवी की एक पत्थर की मूर्ति भी स्थित है, जिसपर उनका नाम हिन्दी में लिखा हुआ है। उस मूर्ति के सामने एक पत्थर का बना हुआ त्रिशूल भी खड़ा किया गया है। 

नवरात्र मेले में घूमती हैं माता

इस मंदिर में वेदोक्त, पुराणोक्त और तंत्रोक्त तीनों विधियों से पूजा होती है। नवरात्र में यहां मेला लगता है। रोजाना हजारों लोग माता के दर्शन करने पहुंचते हैं।

कालकाजी मंदिर में अखंड दीप प्रज्जवलित है। पहली नवरात्र के दिन लोग मंदिर से माता की जोत अपने घर ले जाते हैं। मंदिर में सुबह शाम आरती होती है। 

मान्यता है कि अष्टमी और नवमी को माता मेला में घूमती हैं, इसलिए अष्टमी के दिन सुबह की आरती के बाद कपाट खोल दिया जाता है। इस दौरान दो दिन आरती नहीं होती है और फिर उसके बाद दसवीं को आरती की जाती है। 

सुबह-शाम की आरती का वक़्त 

मंदिर सुबह 4:00 बजे से रात्री 11:00 बजे तक खुला रहता है, लेकिन दिन में 11:30 से 12:00 बजे के बीच 30 मिनट तक भोग लगाने के लिए यह मंदिर बंद किया जाता है। वहीं शाम को 3:00 से 4:00 बजे के बीच साफ-सफाई के लिए बंद किया जाता है। बाकी किसी भी समय इस मंदिर में पूजा-पाठ और दर्शन के लिए जा सकते हैं।

कालकाजी मंदिर में सुबह और शाम को दो बार आरती की जाती है। शाम को होने वाली आरती को तांत्रिक आरती के रूप में जाना जाता है। मौसम के अनुसार आरतियों के समय में भी बदलाव होते रहता है। इस मंदिर में हर दिन अलग-अलग पुजारी पूजा-पाठ करते हैं। 

माता को क्या लगता है भोग 

जैसा कि ऊपर बताया गया है कि माता का विशिष्ट भोग का समय सुबह 11:30 बजे होता है, जिसमें 6-7 तरह के व्यंजन और पकवान उन्हें चढ़ाया जाता है। वहीं आरती के वक्त बुरा और पंचमेवा का भोग लगाया जाता है, चूंकि माता को सात्विक, राजसी और तामसी तीनों तरह से भोग लगाए जाते हैं।

माता और यहां विराजमान भैरव को मंगलवार और सप्तमी के दिन को छोड़ कर सोमरस आज के समय में मदिरा भी चढ़ाया जाता है, वैसे ये आवश्यक नहीं होता है। 

मशहूर शख्सियत पहुंचते हैं माता के दरबार में

मां कालकाजी का ये मंदिर मनोकामना मंदिर के नाम से भी मशहूर है, इसलिए आम से खास लोग मंदिर में मां के दर्शन और इच्छा पूर्ति के लिए आते रहे हैं, जिनमें बॉलीवुड के कलाकारों से लेकर राजनीति के बड़े-बड़े दिग्गज नेता तक शामिल हैं। 

कालकाजी मंदिर कैसे पहुंचे 

मैं लखनऊ में रहती हूँ, यहाँ लखनऊ मेट्रो का सफर सीमित है, पर दिल्ली मेट्रो बहुत विस्तृत है। कालकाजी मंदिर पहुंचने के लिए दिल्ली का सफर अच्छा है।

वॉयलेट लाइन वाली मेट्रो से आसानी से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। कालकाजी मेट्रो स्टेशन पर उतर कर आसानी से मंदिर तक पहुंच सकते हैं। वहीं अगर सड़क मार्ग से कालकाजी मंदिर पहुंचना चाहते हैं तो शहर के किसी भी कोने से दिल्ली परिवहन निगम की बसों, निजी बसों और टैक्सियों के माध्यम से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

कालका जी मंदिर दिल्ली के सबसे प्रसिद्ध जगह नेहरू प्लेस के पास और ओखला-कालकाजी मेट्रो स्टेशन के बीच में स्थित है। कालकाजी मंदिर के पास कुछ और प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है।

मंदिर में दर्शन करने के बाद अगर घूमने की प्लानिंग है तो लोटस टेंपल, इंडिया गेट, अक्षरधाम और लालकिला जैसी जगहों पर घूम सकते हैं। 

धन्यवाद्

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